Saturday, September 6, 2008

दोस्ती……………या इम्तहान खुद का…?


  मेरे दोस्त,
  आज तेरे साथ जो हुआ,
  तो पता नही,मुझे भी कुछ हुआ,
  तुझे भी हुआ,ये मुझे पता है मेरे दोस्त
  लेकिन तुझे तो अंधेरों में है मुस्कुराने की आदत
  इसलिये करता हूं खुदा से इबादत,
  की दूर रख ऐसे दोस्तों को
  जो दूर करें अंदर की चाहत
  और पैदा कर दें खुद में,खुद से नफ़रत
  की मै करता हूं उनका स्वागत,
  जो नहीं उसके लायक
  ना देना मुझे ऐसे दोस्त
  जो बना दें मुझे भी नालायक !!!
  के बनना है मुझे मां के सपनों का बेटा
  और पापा के अरमानों का चहेता…………………………………………
ये लाइनें समर्पित हैं मेरे दोस्त मनीष को और उसकी शुचिता को जिसको आज नजर लग ही गयी थी दुर्योधन दोस्तों की……………………………………

4 comments:

Anonymous said...

मेरे दुख का भागीदार बनने के लिये शुक्रिया दोस्त …
आज काफी कुछ सीख गया

लेकिन बिना ध्यान सीखे तूने इतना अच्छा कैसे लिख दिया भाई

बहुत अच्छा बहाव और अभिव्यक्ति है

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!!


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निवेदन

आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.

ऐसा ही सब चाहते हैं.

कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.

हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.

-समीर लाल
-उड़न तश्तरी

Waterfox said...

आप वास्तव मे मनीष के अछ्छे दोस्त है!
कविता सुन्दर!

Debu said...

एक अनजान दोस्त की तरफ़ से आपको हार्दिक शुभकामना कि आपने इतने सधे हुए शब्दों में अपने दिल की बात कह दी .....वाकई ऐसे दोस्त मिलें तो दुश्मनों की जरुरत ही ना हो ......दोस्ती शब्द से आपके ब्लॉग पर नजर दौडाई .....मैंने भी अपने सफर ब्लॉग पर दोस्ती के बारे में चंद लाईने लिखी हैं ....अगर वक्त मिले तो जरुर पढ़ें ...