Friday, July 11, 2008

हम विकसित दुनिया का हिस्सा हैं

हम आज २१वी सदी मे जी रहें हैं और हम आज काफी सभ्य एवं ताकतवर हैं तथा हम आज भगवान को चैलेन्ज करने मे पीछे नही हटते भले ही हमारे मानव परिवार मे कुछ लोग गुमनामी की जिंदगी जी रहे हो एवं उनके पास कुछ पाने के लिए तो दूर कुछ खोने के लिए भी न हो उनकी जिंदगी के ज्यादातर हिस्से रोने और तड़पने मे ही बीत जाती हो ! जहा कुछ लोग अपने दिन की सुरुआत कोल्ड ड्रिंक और बियर पीकर सुरु करतें हों वहि कुछ लोग शुद्ध पानी के लिए तरसतें हैं सारी दुनिया जानती है की कोल्ड ड्रिंक बनने वाली कम्पनियाँ पानी का सबसे ज्यादा हिस्सा प्रयोग करती हैं फ़िर भी हम पढे लिखे लोग इनकी खपत कम नहीं करते ताकि गरीबो को कम से कम पानी तो नसीब हो सके हम शान्ति चाहतें हैं लेकिन हम विनाशक हथियार तैयार करने मे पीछे नही हटते और भी हम बहुत कुछ ऐसा करतें हैं जो कई मासूमों और गरीबो के लिए घातक हैं और हम गर्व से कहते हैं कि हम विकसित और सभ्य हैं क्योंकि .............................................. हम विकसित दुनिया का हिस्सा हैं !

शादी या बर्बादी

यह बेटी का दुर्भाग्य है या बाप का!यह तो ऊपर वाला जाने क्योंकि जनाब आज की स्थिति देख कर तो यही लगता है।जब बेटी बड़ी हो जाती हैतभी से बाप की परेशानिया शुरु हों जातीं है और बेटी तो हमेशा इसी चिंता मे रहती है कि उसने पैदा होकर तो कोई गुनाह नही कर दिया।परेशानियाँ यही खत्म नही हो जातीं शादी के वक्त बाप अपनी मेहनत से कमाए हुए धन को दहेज़ के लालचियों को सिर्फ़ इसलिए परोसता है कि उसकी बेटी कि शादी अच्छे घर मे हो सके।लेकिन फ़िर भी वह उन दरिंदों को खुश करने मे नाकाम रहता है क्योंकि उनकी मांगे कम नही होतींऔर व्यवस्था कितनी भी अच्छी क्यों न हो वे संतुष्ट नही होते मतलब शादी के दिन से पहले वह पैसे की व्यवस्था को लेकर परेशान रहता है और शादी के दिन व्यवस्था को लेकर। परेशानियाँ यही ख़त्म हो तो भी अच्छा लेकिन इसके बाद भी परेशानियाँ मुह बाए रहती हैं क्योंकि मांगें अभी ख़त्म नही हुई होती हैंअगर मागें पुरी न हुईं तो बेटी को शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती हैं तो मई आप लोगों से इस ब्लॉग के जरिये यह पुचना चाहता की शादी है या बर्बादी क्योंकि भारत कितना भी विकसित हो गया हो लेकिन गावों मे आज शादियों का यही हाल है क्योंकि हम मानसिक रूप से विकसित शायद अभी भी नही हुए हैं।हमारी संस्कृति का ये एक विकृत रूप है कहाँ शादियाँ दो आत्माओं का ही नही बल्कि दो मंदिरों(घरों)का मिलन है।तो यह हमारे संस्कृति ही नही बल्कि मानव समाज के लिए अच्छा होगा कि शादी को एक त्यौहार की तरह मनाया जाए।त्यौहार इसलिए क्योंकि हर त्योहारों का कोई संदेश होता है और अगर हम शादियों को एक त्यौहार कि तरह मनायेगें तो समाज को एक अच्छा संदेश जायेगा और तब कहीं जाकरशादी...... शादी हो पायेगी ना कि बरबादी.............

Wednesday, July 9, 2008

डॉक्टर या दानव

पंचो राम-रामआप सोच रहें होगें की अभी तक सो रहा था अच्छा था पता नही कैसे जग गया तो महाराज मेरा लिखने का कीडा एक बार फ़िर कुलबुला उठा है अगर आप सज्जनों को कोई कष्ट हो तो इसके लिए माफ़ी वैसे जो कुछ भी लखने जा रहा हूँ उससे कुछ लोग तो लाल पीले होंगे ही लेकिन क्या करुँ जोर ज्यादा मार रहा है तो सोचा की लिख ही दूँ वैसे डॉक्टरों से मेरी कोई दुश्मनी नही है लेकिन क्या करुँ कुछ वाकया ही ऐसा घटा की लिखा रहा हूँ क्या कहा आपने चाट रहा हूँ अच्छा महाराज अब चाटना बंद करतां हूँ
दरअसल आज कल मै बीमार ज्यादा पड़ रहा हूँ तो पिछले कुछ दिनों इन देवताओं से मिलना हुआ तो इस कड़ी में
पहले श्री स्वनामधन्य के जी सिंह जी से मिला पहले तो मिलने से पहले हमें लगा की हम किसी डॉक्टर से नही तोप से मिलने आयें हों। काफ़ी रसाकस्सी करते हुए जब पहुंचे तो डॉक्टर साहब कही आराम फरमाने गए थे वो ?क्यों अरे भाई एसी में मरीजों को देखते हुए पसीना और टेंशन जो हो गया था और हम भूखे प्यासे लौह शरीर से जो निर्मित थे तो थकते कहा से ? चलिए भाई डॉक्टर साहब आयें और सारे भक्त टूट पड़े दर्शनों के लिए जैसे ही मै दर्शन के लिए पहुँचा तो बगैर मेरे तरफ़ देखते हुए उन्होंने अपने सहायको से औसधियाँ लिखवायीं और मेरी क्या समस्या है इसको जाने बगैर मुझे रवाना किया। मैंने भी भगवान् के प्रसाद को सब कुछ मानकर चलता बना बाद में मैंने दवाईयों के खोज में अपना वह पूरा दिन बर्बाद किया तो बाद में पता चला की ये दवा पारवती हॉस्पिटल में मिलेंगी मै खुश होते हुए हॉस्पिटल पहुँचा लेकिन यह क्या!!!! यह हॉस्पिटल तो उन्ही के जी सिंह जी का ही था मेरे क्रोध की सीमा नही रही और मै वहा से सीधा घर चला आया और मैंने ये सोचा जब इतने उचे पद वाले डॉक्टर का ये हाल है तो अन्य कैसे होंगे ऐसे दानव रूपी डॉक्टरों से बचें