Tuesday, January 20, 2009

एक बात जिसकी कसक आज भी है.........


वो थे हम थे,थी उनकी परछांई भी
कह सकते थे हम भी सब कुछ घडी ऎसी भी आयी थी
ढल गयी अफसोस ऎसी कई शामें
जब मेरी भी बारी आयी थी
पहुंचा अंत में हिम्मत करके
दिल की बात उन्ही से कहने
सबने हमको ये बतलाया
किस्मत में मेरी जुदाई थी
कल ही हुई वो मुझसे पराई थी

हे राम तेरे राज में

हे राम तेरे राज में कैसा हाहाकार है,
कैसे मै बोलूं तेरा ही संस्कार है,
पीस रहा गरीब,मांयें करती चीत्कार हैं,
हे राम तेरे राज में...........
शिक्षा के लिए तरसता युवक
अज्ञानी बनाता सरकार है
विद्रोहियों को मिलाता संरक्षण
संतो को फटकार है
हे राम तेरे राज में.........
नेता कहलाते गुरूजी
गुरु तो गुरुघंताल है
आतंकियों को मिलता संरक्षण
बलात्कारियों को पुरस्कार है
हे राम तेरे राज में...........

Saturday, September 6, 2008

दोस्ती……………या इम्तहान खुद का…?


  मेरे दोस्त,
  आज तेरे साथ जो हुआ,
  तो पता नही,मुझे भी कुछ हुआ,
  तुझे भी हुआ,ये मुझे पता है मेरे दोस्त
  लेकिन तुझे तो अंधेरों में है मुस्कुराने की आदत
  इसलिये करता हूं खुदा से इबादत,
  की दूर रख ऐसे दोस्तों को
  जो दूर करें अंदर की चाहत
  और पैदा कर दें खुद में,खुद से नफ़रत
  की मै करता हूं उनका स्वागत,
  जो नहीं उसके लायक
  ना देना मुझे ऐसे दोस्त
  जो बना दें मुझे भी नालायक !!!
  के बनना है मुझे मां के सपनों का बेटा
  और पापा के अरमानों का चहेता…………………………………………
ये लाइनें समर्पित हैं मेरे दोस्त मनीष को और उसकी शुचिता को जिसको आज नजर लग ही गयी थी दुर्योधन दोस्तों की……………………………………

Monday, August 4, 2008

मनुष्य की मूलभूत समस्या

मनुष्य के कृत्यों को देखो। तीन हजार वर्षों में पाँच हजार युद्ध आदमी ने लड़े हैं। उसकी पूरी कहानी हत्याओं की कहानी है, लोगों को जिंदा जला देने की कहानी है और एक को नहीं, हजारों को। और यह कहानी खत्म नहीं हो गई है।

तुम सोचते हो आदमी बंदर से विकसित हो गया? किसी बंदर ने अब तक किसी दूसरे बंदर को जिंदा नहीं जलाया। कोई बंदर न तो हिंदू है, न मुसलमान है, न ईसाई है; बंदर सिर्फ बंदर है।

और अगर यही विकास है, तो ऐसे विकास का कोई मतलब नहीं। सच तो यह है कि आदमी विकसित नहीं हुआ है, केवल वृक्षों से नीचे गिर गया है। अब तुम बंदर के साथ भी मुकाबला नहीं कर सकते हो। अब तुममें वह बल भी नहीं है कि तुम एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर छलाँग लगा जाओ। अब वह जान भी न रही, वह यौवन भी न रहा, वह ऊर्जा भी न रही और तुम्हारे कृत्यों की पूरी कहानी इस बात का सबूत है कि तुम आदमी नहीं बने, राक्षस बन गए।

हाँ राक्षस, लेकिन अच्छे-अच्छे नामों की आड़ में। हिंदू की आड़ में। हिंदू की आड़ में तुम मुसलमान की छाती में छुरा भोंक सकते हो, बिना किसी परेशानी के। मुसलमान की आड़ में तुम हिंदू के मंदिर को जला सकते हो, जिसने तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ा, बिना किसी चिंता के।

दूसरे महायुद्ध में अकेले हिटलर ने साठ लाख लोगों की हत्या की- एक आदमी ने। इसको तुम विकास कहोगे? दूसरा महायुद्ध खत्म होने को है, जर्मनी ने हथियार डाल दिए हैं और अमेरिका के प्रेसीडेंट ने जापान के ऊपर, हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिरवाए। खुद अमेरिकी सेनापतियों का कहना है कि यह बिलकुल बेकार बात थी, क्योंकि जर्मनी के हार जाने के बाद जापान का हार जाना ज्यादा से ज्यादा दो सप्ताह की बात थी।

पाँच साल की लड़ाई अगर दो सप्ताह और चल जाती तो कुछ बिगड़ न जाता। लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी जैसे बड़े नगरों पर जिनके निवासियों का युद्धों से कोई संबंध नहीं; छोटे बच्चे और बूढ़े और स्त्रियाँ- दस मिनट के भीतर दो लाख व्यक्ति राख हो गए। और अमेरिका के जिस प्रेसीडेंट ने यह आज्ञा दी, उसका नाम भी हमने अभी तक नहीं बदला।

उस प्रेसीडेंट का नाम था, ट्रूमैन; सच्चा आदमी। अब तो कम से कम उसे अनट्रूमैन कहना शुरू कर दो और दूसरे दिन सुबह जब अखबारों ने, अखबारों के प्रतिनिधियों ने प्रेसीडेंट से पूछा- क्या आप रात आराम से सो तो सके, तो टूरूमैन ने कहा कि मैं इतने आराम से कभी नहीं सोया, जितना कल रात सोया, जब मुझे खबर मिली कि एटम बम सफल हो गया है। एटम बम की सफलता महत्वपूर्ण है। दो लाख निहत्थे, निर्दोष आदमियों की हत्या कोई चिंता पैदा नहीं करती। इसको तुम आदमी कहते हो?

नहीं, आदमी का कोई विकास नहीं हुआ। आदमी का सिर्फ एक ही विकास है और वह है कि वह अपनी अंतरात्मा को पहचान ले। उसके सिवाय आदमी का कभी कोई विकास नहीं हो सकता। जिस दिन मैं अपनी अंतरात्मा को पहचान लेता हूँ, उस दिन मैंने तुम्हारी अंतरात्मा को भी पहचान लिया।

जिस दिन मैंने अपने को जान लिया, उस दिन मैंने इस जगत में जो भी जानने योग्य है, वह सब जान लिया। और उसके बाद मेरे जीवन में जो सुगंध होगी, वह केवल मात्र विकास है; जो रोशनी होगी, वही केवल एकमात्र विकास है। जिसको हम अभी तक विकास कहते रहे हैं, वह कोई विकास नहीं है। हमारे पास बंदरों से सामान ज्यादा है, लेकिन हमारे पास बंदरों से ज्यादा आत्मा नहीं है।

आत्मिक विकास ही एकमात्र विकास : यह भी हो सकता है कि आदमी अंधा हो और अपने को जानता हो तो वह आँख वाले से बेहतर है। आखिर तुम्हारी आँख क्या देखेगी? - उसने अंधा होकर भी अपने को देख लिया। और अपने को देखते ही उसने उस केंद्र को देख लिया है, जो सारे अस्तित्व का केंद्र है। वह अनुभूति अमृत की अनुभूति है, शाश्वत नित्यता की अनुभूति है।

केवल थोड़े से लोग मनुष्य-जाति के इतिहास में आदमी बने हैं। वे ही थोड़ी से लोग, जिन्होंने अपनी आत्मा को अनुभव किया है। शेष सब नाममात्र के आदमी हैं। उनके ऊपर लेबल आदमी का है, खोखा आदमी का है। भीतर कुछ भी नहीं है। और जो कुछ भी है, वह हर तरह के जहर से भरा है, ईर्षा से भरा है, विध्वंस से भरा है, हिंसा से भरा है।

अंतिम रूप में मैं तुमसे यही कहना चाहता हूँ कि अगर तुम्हारे जीवन में जरा भी बुद्धि है, तो इस चुनौती को स्वीकार कर लेना कि बिना अपने को जाने अर्थी को उठने नहीं दोगे। हाँ, अपने को जानकर कल की उठने वाली अर्थी आज उठ जाए, तो भी कोई हर्ज नहीं, क्योंकि जिसने अपने को जान लिया, उसकी फिर कोई मृत्यु नहीं है। अमृत का अनुभव एकमात्र विकास है

यह है ओशो वाणी जिसे मै आप लोगों के बीच पहुचाने का एक माध्यम भर हूं  

Friday, July 11, 2008

हम विकसित दुनिया का हिस्सा हैं

हम आज २१वी सदी मे जी रहें हैं और हम आज काफी सभ्य एवं ताकतवर हैं तथा हम आज भगवान को चैलेन्ज करने मे पीछे नही हटते भले ही हमारे मानव परिवार मे कुछ लोग गुमनामी की जिंदगी जी रहे हो एवं उनके पास कुछ पाने के लिए तो दूर कुछ खोने के लिए भी न हो उनकी जिंदगी के ज्यादातर हिस्से रोने और तड़पने मे ही बीत जाती हो ! जहा कुछ लोग अपने दिन की सुरुआत कोल्ड ड्रिंक और बियर पीकर सुरु करतें हों वहि कुछ लोग शुद्ध पानी के लिए तरसतें हैं सारी दुनिया जानती है की कोल्ड ड्रिंक बनने वाली कम्पनियाँ पानी का सबसे ज्यादा हिस्सा प्रयोग करती हैं फ़िर भी हम पढे लिखे लोग इनकी खपत कम नहीं करते ताकि गरीबो को कम से कम पानी तो नसीब हो सके हम शान्ति चाहतें हैं लेकिन हम विनाशक हथियार तैयार करने मे पीछे नही हटते और भी हम बहुत कुछ ऐसा करतें हैं जो कई मासूमों और गरीबो के लिए घातक हैं और हम गर्व से कहते हैं कि हम विकसित और सभ्य हैं क्योंकि .............................................. हम विकसित दुनिया का हिस्सा हैं !

शादी या बर्बादी

यह बेटी का दुर्भाग्य है या बाप का!यह तो ऊपर वाला जाने क्योंकि जनाब आज की स्थिति देख कर तो यही लगता है।जब बेटी बड़ी हो जाती हैतभी से बाप की परेशानिया शुरु हों जातीं है और बेटी तो हमेशा इसी चिंता मे रहती है कि उसने पैदा होकर तो कोई गुनाह नही कर दिया।परेशानियाँ यही खत्म नही हो जातीं शादी के वक्त बाप अपनी मेहनत से कमाए हुए धन को दहेज़ के लालचियों को सिर्फ़ इसलिए परोसता है कि उसकी बेटी कि शादी अच्छे घर मे हो सके।लेकिन फ़िर भी वह उन दरिंदों को खुश करने मे नाकाम रहता है क्योंकि उनकी मांगे कम नही होतींऔर व्यवस्था कितनी भी अच्छी क्यों न हो वे संतुष्ट नही होते मतलब शादी के दिन से पहले वह पैसे की व्यवस्था को लेकर परेशान रहता है और शादी के दिन व्यवस्था को लेकर। परेशानियाँ यही ख़त्म हो तो भी अच्छा लेकिन इसके बाद भी परेशानियाँ मुह बाए रहती हैं क्योंकि मांगें अभी ख़त्म नही हुई होती हैंअगर मागें पुरी न हुईं तो बेटी को शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती हैं तो मई आप लोगों से इस ब्लॉग के जरिये यह पुचना चाहता की शादी है या बर्बादी क्योंकि भारत कितना भी विकसित हो गया हो लेकिन गावों मे आज शादियों का यही हाल है क्योंकि हम मानसिक रूप से विकसित शायद अभी भी नही हुए हैं।हमारी संस्कृति का ये एक विकृत रूप है कहाँ शादियाँ दो आत्माओं का ही नही बल्कि दो मंदिरों(घरों)का मिलन है।तो यह हमारे संस्कृति ही नही बल्कि मानव समाज के लिए अच्छा होगा कि शादी को एक त्यौहार की तरह मनाया जाए।त्यौहार इसलिए क्योंकि हर त्योहारों का कोई संदेश होता है और अगर हम शादियों को एक त्यौहार कि तरह मनायेगें तो समाज को एक अच्छा संदेश जायेगा और तब कहीं जाकरशादी...... शादी हो पायेगी ना कि बरबादी.............

Wednesday, July 9, 2008

डॉक्टर या दानव

पंचो राम-रामआप सोच रहें होगें की अभी तक सो रहा था अच्छा था पता नही कैसे जग गया तो महाराज मेरा लिखने का कीडा एक बार फ़िर कुलबुला उठा है अगर आप सज्जनों को कोई कष्ट हो तो इसके लिए माफ़ी वैसे जो कुछ भी लखने जा रहा हूँ उससे कुछ लोग तो लाल पीले होंगे ही लेकिन क्या करुँ जोर ज्यादा मार रहा है तो सोचा की लिख ही दूँ वैसे डॉक्टरों से मेरी कोई दुश्मनी नही है लेकिन क्या करुँ कुछ वाकया ही ऐसा घटा की लिखा रहा हूँ क्या कहा आपने चाट रहा हूँ अच्छा महाराज अब चाटना बंद करतां हूँ
दरअसल आज कल मै बीमार ज्यादा पड़ रहा हूँ तो पिछले कुछ दिनों इन देवताओं से मिलना हुआ तो इस कड़ी में
पहले श्री स्वनामधन्य के जी सिंह जी से मिला पहले तो मिलने से पहले हमें लगा की हम किसी डॉक्टर से नही तोप से मिलने आयें हों। काफ़ी रसाकस्सी करते हुए जब पहुंचे तो डॉक्टर साहब कही आराम फरमाने गए थे वो ?क्यों अरे भाई एसी में मरीजों को देखते हुए पसीना और टेंशन जो हो गया था और हम भूखे प्यासे लौह शरीर से जो निर्मित थे तो थकते कहा से ? चलिए भाई डॉक्टर साहब आयें और सारे भक्त टूट पड़े दर्शनों के लिए जैसे ही मै दर्शन के लिए पहुँचा तो बगैर मेरे तरफ़ देखते हुए उन्होंने अपने सहायको से औसधियाँ लिखवायीं और मेरी क्या समस्या है इसको जाने बगैर मुझे रवाना किया। मैंने भी भगवान् के प्रसाद को सब कुछ मानकर चलता बना बाद में मैंने दवाईयों के खोज में अपना वह पूरा दिन बर्बाद किया तो बाद में पता चला की ये दवा पारवती हॉस्पिटल में मिलेंगी मै खुश होते हुए हॉस्पिटल पहुँचा लेकिन यह क्या!!!! यह हॉस्पिटल तो उन्ही के जी सिंह जी का ही था मेरे क्रोध की सीमा नही रही और मै वहा से सीधा घर चला आया और मैंने ये सोचा जब इतने उचे पद वाले डॉक्टर का ये हाल है तो अन्य कैसे होंगे ऐसे दानव रूपी डॉक्टरों से बचें