Tuesday, January 20, 2009

एक बात जिसकी कसक आज भी है.........


वो थे हम थे,थी उनकी परछांई भी
कह सकते थे हम भी सब कुछ घडी ऎसी भी आयी थी
ढल गयी अफसोस ऎसी कई शामें
जब मेरी भी बारी आयी थी
पहुंचा अंत में हिम्मत करके
दिल की बात उन्ही से कहने
सबने हमको ये बतलाया
किस्मत में मेरी जुदाई थी
कल ही हुई वो मुझसे पराई थी

4 comments:

Vinay said...

बहुत सुन्दर, बधाई

---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम

Udan Tashtari said...

अच्छा है, लिखते रहिये.

seema gupta said...

सबने हमको ये बतलाया
किस्मत में मेरी जुदाई थी
कल ही हुई वो मुझसे पराई थी
"ओह किस्मत भी न जाने क्या क्या एक पल मे दिखा दे...."

Regards

Anonymous said...

वाह क्या दर्द है भाई !!

ऐसी ही मुँह की खानी

मैने भी है खाई॥

कब उठी थी उनकी डोली

कि अपनी रूमाल

आपने आँसुओं से धोली …

बहुत अच्छे … क्या पंक्तियाँ हैं

आशा करता हूँ हर रोज़ ऐसी ही मधुर पंक्तियों के साथ मेरी सुबह होगी।