Friday, July 11, 2008

शादी या बर्बादी

यह बेटी का दुर्भाग्य है या बाप का!यह तो ऊपर वाला जाने क्योंकि जनाब आज की स्थिति देख कर तो यही लगता है।जब बेटी बड़ी हो जाती हैतभी से बाप की परेशानिया शुरु हों जातीं है और बेटी तो हमेशा इसी चिंता मे रहती है कि उसने पैदा होकर तो कोई गुनाह नही कर दिया।परेशानियाँ यही खत्म नही हो जातीं शादी के वक्त बाप अपनी मेहनत से कमाए हुए धन को दहेज़ के लालचियों को सिर्फ़ इसलिए परोसता है कि उसकी बेटी कि शादी अच्छे घर मे हो सके।लेकिन फ़िर भी वह उन दरिंदों को खुश करने मे नाकाम रहता है क्योंकि उनकी मांगे कम नही होतींऔर व्यवस्था कितनी भी अच्छी क्यों न हो वे संतुष्ट नही होते मतलब शादी के दिन से पहले वह पैसे की व्यवस्था को लेकर परेशान रहता है और शादी के दिन व्यवस्था को लेकर। परेशानियाँ यही ख़त्म हो तो भी अच्छा लेकिन इसके बाद भी परेशानियाँ मुह बाए रहती हैं क्योंकि मांगें अभी ख़त्म नही हुई होती हैंअगर मागें पुरी न हुईं तो बेटी को शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती हैं तो मई आप लोगों से इस ब्लॉग के जरिये यह पुचना चाहता की शादी है या बर्बादी क्योंकि भारत कितना भी विकसित हो गया हो लेकिन गावों मे आज शादियों का यही हाल है क्योंकि हम मानसिक रूप से विकसित शायद अभी भी नही हुए हैं।हमारी संस्कृति का ये एक विकृत रूप है कहाँ शादियाँ दो आत्माओं का ही नही बल्कि दो मंदिरों(घरों)का मिलन है।तो यह हमारे संस्कृति ही नही बल्कि मानव समाज के लिए अच्छा होगा कि शादी को एक त्यौहार की तरह मनाया जाए।त्यौहार इसलिए क्योंकि हर त्योहारों का कोई संदेश होता है और अगर हम शादियों को एक त्यौहार कि तरह मनायेगें तो समाज को एक अच्छा संदेश जायेगा और तब कहीं जाकरशादी...... शादी हो पायेगी ना कि बरबादी.............

1 comment:

Manish said...

ज़नाब इसीलिये तो कुआरे रहने की चाह है । कुँवारा रहना एक तपस्या है :)